Monday, November 1, 2010

Our Prime Minister

आज मै डीडी नेशनल चैनल देख रहा था, चैनल पर लाइव प्रोग्राम चल रहा था जिसमे श्री मनमोहन सिंह जी, ए. र. रहमान और राम कृष्ण मिशन आश्रम को 25 इन्दिरा गांधी अवार्ड दे रहे थे। समारोह के शुरुवात मे उन्होने भाषण चालू किया। मै बार बार छमा चाहूँगा श्री प्रधानमंत्री जी और उनके चाहने वालों से, मै अपने आप को रोक नहीं पा रहा पर....। ऐसा लग रहा था जैसे कक्षा 5 के छात्र को निबंध पड़ने पर गुरु ने मजबूर किया हो और वो ड़र क मारे अटक अटक के निबंध पड़ रहा हो।
I m very sorry to say this but his speech SUCKS man!!!....
उनसे ज्यादा तो सोनिया गांधी जी मे जोश है।
any ways..
Cheers to A R Rahman & Ram Krishna Mishan for getting Indira Gandhi Award!!!

Friday, October 1, 2010

गौर करने वाली बात है

आज ऑफिस मे बहुत ही मजेदार बात हुई।
हमारी एक सहयोगी है जो बहुत ही मेहनती और निष्ठावान तरीके से काम करती है और बहुत ही साफ मन वाली भी है। आज उन्होने मुझसे 500 रुपेए तुड़ाने को कहा। मैंने 100-100 रुपेए के नोट निकाल कर उन्हे दिया। कडक नोट देखकर वो बहुत खुश हुईं। फिर अचानक उन्होने मुझसे कहा, "कल कोई भी नोट खर्च मत करना।"
मैंने पुछा,"ऐसा क्यूँ ! क्यू ना खर्च करू कल छुट्टी है कल मै शॉपिंग को जाऊंगा, बहुत समान लेना है। "
उन्होने तपाक से बीच मे बोला, " नहीं नहीं कल मत खर्च करना जो खरीदना है आज ही खरीद लो, कल अगर बहुत जरूरत हो तो चिल्लर ही खर्च करना, पर नोट नहीं"।
सभी अन्य सहयोगी ये सुनकर एक दम शांत हो गए और हमारी बात ध्यान से सुनने लगे। सभी को ये सुनकर अजीब लगा।
मैंने बहुत ही उत्सुकता से उनसे पुछा, " आखिर क्या बात है जो मै नोट न खर्च करू"।
उनका उत्तर सुनते ही पूरा माहौल हसी के ठहाके मे गूंज उठा।
वो बोली, "कल 2 ओक्टोबर है न गांधी जी की जयंती, और नोटों पर उनकी तस्वीर होती है, इसलिए मै उन्हे नहीं खर्च करती, आप भी मात करना, कम से कम एक दिन के लिए"।
सबकी हंसी तो शांत हो गयी पर सब के मन मे एक सवाल छोड़ गयी।
ये बात मजेदार तो थी ही पर सोचने वाली भी वो इसलिए की आज भी कुछ लोग है जो महात्मा गांधी को याद करते है।
ये बात बहुत ही गौर करने वाली है। जरा सोचिए!

Sunday, September 26, 2010

एनिमल प्लानेट

मुझे नहीं पता की मै कौन हूँ। मुझे ये भी नहीं पता की तुम कौन हो। ये सारा संसार तो मुझे एनिमल प्लानेट चैनल लगता है, और हर बार एक ही एपिसोड चलता है जिसका सिर्शक है "वाइल्ड लाइफ", सब एक दूसरे को मार कर खाना चाहते है, और मरता सिर्फ बेबस शाकाहारी जानवर है। शेर शेर को नहीं खाता, भेड़िया भेड़िये को नहीं खाता, वो सब मिलके बेबस जानवरो को खाते है। कुछ इसी तरह हमारा भी हाल है। हम जनता " एक आम आदमी" बेबस शाकाहारी जानवर है। और हमारे कुछ नेता मांसाहारी है। सब मिलके आम जनता को खाना चाहते है। उनके बीच सिर्फ एक ही होड लगी है, कौन कितना शिकार कर पता है। पर हम अब और नहीं सहेंगे, उठो! जागो! और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाओ। कब तक वो हमें अपना शिकार बनाएंगे। दिखादों की हम आम नहीं अब हम भी खास है।

मुझे जीने दो और तुम भी जीलो

मौत बहुत ही खौफनाक होती है, उनके लिए नहीं जो मर जाते है, बल्कि उनके लिए जो उनके पीछे छूट जाते है। बंद करो मंदिर और मस्जिद के नाम पे लड़ना, क्यूकी ये आपकी सभ्यता को बचाने की लड़ाई नहीं, ये शुरुवात है हमारे भविष्य के तबाही की। " दोस्त यार ये यारी कैसी ? मुझे जीने दो और तुम भी जिलो ! "